न्यायपालिका और चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में चुनाव सुधार के लिए उठाए गए कदम ।

भारतीय चुनाव प्रक्रिया को और फ्री एंड फेयर बनाने के लिए न्यायपालिका और चुनाव आयोग द्वारा समय समय पर विभिन्न कदम उठाए जाते रहे है ,उक्त के संदर्भ में हाल में उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम निम्नवत है :-

राजनीति में अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा:सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए यह अनिवार्य कर दिया है कि वे अपने खिलाफ लंबित किसी भी आपराधिक मामलों की घोषणा करें। राजनीतिक दलों को भी यह बताना होगा कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को क्यों खड़ा कर रहे हैं।

*लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)

यह फैसला राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए एक प्रमुख सुधार के रूप में माना जाता है। इस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित किया, जिसने मौजूदा सांसदों और विधायकों को तब तक पद पर बने रहने की अनुमति दी थी, जब तक वे तीन महीनों के भीतर अपनी सजा के खिलाफ अपील करते और अपील उच्च न्यायालय में लंबित रहती। इस प्रावधान के कारण दोषी सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्यता से बचने का मौका मिलता था, जिससे कानूनी कार्यवाही में लंबा विलंब होता था।यह कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत के खिलाफ था और राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा देता था, जो कि भारत जैसे उदार लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ था।

अब दोषी सांसद या विधायक तुरंत अपनी सदस्यता खो देंगे, जिससे जनता का सिस्टम पर भरोसा बढ़ेगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर न्यायपालिका का निर्णय

न्यायपालिका ने यह आदेश दिया कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति उस समिति द्वारा की जाए जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश (CJI) हों, जब तक कि संसद इस संबंध में कानून न बना ले। हालांकि, बाद में संसद ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा आचरण और कार्यकाल) अधिनियम 2023 पारित किया, जिसमें समिति के एक सदस्य (CJI) को बदलकर प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय मंत्री शामिल किया गया।इस अधिनियम के तहत कार्यकाल को 6 साल या 65 साल की आयु, जो भी पहले हो, तक सीमित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त के सेवा शर्तें मुख्य न्यायाधीश की तरह होंगी और अन्य चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त की तरह होंगी। इसने चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता, स्वायत्तता और निष्पक्षता को सुनिश्चित किया।

इलेक्टोरल बॉन्ड योजना

यह योजना काफी विवादों में रही। 2017 के वित्त अधिनियम ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की, जिससे व्यक्ति और कंपनियां राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से दान कर सकती हैं। इसे राजनीतिक चंदों में पारदर्शिता लाने के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इससे पारदर्शिता में कमी आ सकती है और बड़े दलों को फायदा हो सकता है।एक ऐतिहासिक सर्वसम्मत फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को “असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना” करार देते हुए खारिज कर दिया। इस योजना के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उन महत्वपूर्ण कानूनी संशोधनों को भी निरस्त किया, जो अमीर कंपनियों को असीमित राजनीतिक दान करने की अनुमति देते थे।मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार की योजना और उससे जुड़े जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, कंपनियों अधिनियम और आयकर अधिनियम के संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मतदाताओं के राजनीतिक धन की जानकारी के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

चुनावी वादों की न्यायिक समीक्षा

न्यायपालिका ने राजनीतिक दलों द्वारा किए गए चुनावी वादों, विशेष रूप से फ्रीबीज (मुफ्त चीजों) और अत्यधिक उपहारों की बढ़ती जांच शुरू की है। 2022 के एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार के वादों के राज्य की वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई और इस प्रकार की प्रथाओं को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश बनाने पर विचार किया।

चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम

वोटर आईडी से आधार लिंक करना:- डुप्लिकेट वोटर आईडी और फर्जी मतदाताओं को समाप्त करने के लिए, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) वोटर आईडी को आधार से लिंक करने के लिए काम कर रहा है। यह मतदाता सूची को साफ करने और यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि केवल वास्तविक मतदाता ही वोट कर सकें।हालिया विधायी प्रयास: चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 का उद्देश्य वोटर आईडी के साथ आधार को लिंक करना है ताकि कई प्रविष्टियों और फर्जी मतदाताओं को रोका जा सके।

चुनाव आयोग की पेड न्यूज पर कार्रवाई

ECI ने पेड न्यूज (भुगतान करके समाचार प्रकाशित कराना) को एक गंभीर मुद्दा माना है और मीडिया आउटलेट्स द्वारा उम्मीदवारों या पार्टियों को बिना खुलासा किए बढ़ावा देने के मामलों की पहचान करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया है कि यह सामग्री भुगतान की गई है। पेड न्यूज में शामिल उम्मीदवारों पर जुर्माना लगाया जाता है और ऐसी मीडिया गतिविधियों के खर्चे को उनके चुनाव खर्च में शामिल किया जाता है।

मतदाता शिक्षा और भागीदारी को बढ़ावा देने के प्रयास

सिस्टेमैटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (SVEEP) एक पहल है जिसका उद्देश्य मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना, भागीदारी को बढ़ावा देना और विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में मतदाता उदासीनता को समाप्त करना है।मतदाता हेल्पलाइन और ऐप्स: ECI ने वोटर हेल्पलाइन ऐप और ऑनलाइन वोटर पंजीकरण पोर्टल जैसे कई डिजिटल टूल पेश किए हैं, जिससे प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बनाया जा सके।

वोटिंग तकनीक में सुधार

रिमोट वोटिंग: चुनाव आयोग एनआरआई और प्रवासी श्रमिकों के लिए रिमोट वोटिंग की अनुमति देने के तरीकों पर काम कर रहा है ताकि इन समूहों में कम मतदाता संख्या को ठीक किया जा सके। इस दिशा में एक ऐसी प्रणाली विकसित करने पर चर्चा हुई है जो एनआरआई को अपने निर्वाचन क्षेत्रों में शारीरिक रूप से उपस्थित हुए बिना मतदान करने की अनुमति देती है।ये कुछ ऐसे कदम हैं जो सही समय पर सही दिशा में उठाए गए।

संसद द्वारा स्वतंत्रत एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराए जाने हेतु ठोस कदम न उठाए जाने के अभाव में न्यायपालिका ने लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए इन सुधारों की बागडोर संभाली।

धन्यवाद ।

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